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अररिया : मोहन आनंद की पदयात्रा में दिखा जन समर्थन, समस्याओं को सुन जनता को दिया समाधान का भरोसा

अररिया : जन सुराज अभियान के तहत जनसंपर्क की एक सशक्त कड़ी के रूप में बुधवार को जन सुराज नेता मोहन आनंद ने फारबिसगंज प्रखंड में व्यापक पदयात्रा निकाली। इस पदयात्रा की शुरुआत धार्मिक आस्था और जन भावना के प्रतीक शंकरपुर स्थित प्राचीन शिव मंदिर से की गई। यात्रा का मार्ग परवाहा हाट से होकर टेढ़ी मुसहरी तक गया, जहां रास्ते भर आम लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और अपनी समस्याएं खुलकर साझा कीं। इस पदयात्रा का उद्देश्य न केवल जन संवाद को मजबूत करना था, बल्कि गांव-गांव जाकर यह संदेश देना भी था कि जन सुराज केवल चुनावी नारा नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन है जो शासन को जनता के लिए जवाबदेह बनाने की दिशा में काम कर रहा है। मोहन आनंद ने हर पड़ाव पर लोगों से मिलकर उनके सुख-दुख को समझने का प्रयास किया। विशेष रूप से ग्रामीणों ने सड़क की बदहाली, बिजली की अनियमित आपूर्ति, साफ पानी की कमी, स्कूलों की जर्जर स्थिति और स्वास्थ्य केंद्रों की बदइंतज़ामी जैसी गंभीर समस्याएं रखीं। मोहन आनंद ने न केवल इन समस्याओं को गंभीरता से सुना, बल्कि यह भी आश्वासन दिया कि जन सुराज की नीति और सोच के तहत इन मुद्दों को प्राथमिकता पर हल किया जाएगा। उन्होंने कहा,जनता की बात सुनना और समझना ही सबसे बड़ा नेतृत्व होता है। जब तक हम जमीनी सच्चाई से जुड़कर नीति नहीं बनाएंगे, तब तक बदलाव संभव नहीं।
उन्होंने आगे कहा कि बिहार में दशकों से जो व्यवस्थागत लापरवाही रही है, उसे केवल सत्ता परिवर्तन से नहीं, बल्कि सोच और प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन से सुधारा जा सकता है। जन सुराज इसी दिशा में एक ईमानदार प्रयास है। हम जनता को सिर्फ वोट बैंक नहीं, नीति निर्माण का भागीदार मानते हैं, मोहन आनंद ने कहा। पदयात्रा के दौरान कई बुज़ुर्गों, महिलाओं और युवाओं ने भी उनसे खुलकर बातचीत की। खासकर महिलाओं ने राशन वितरण में गड़बड़ी, नल-जल योजना की असफलता और शौचालय योजना की अपूर्णता को लेकर नाराज़गी जताई। युवाओं ने बेरोज़गारी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों की कमी की बात कही। मोहन आनंद ने सभी को आश्वस्त किया कि जन सुराज का मकसद सत्ता पाना नहीं, बल्कि बिहार को उस रास्ते पर ले जाना है जहां गांव-गांव में स्कूल चले, अस्पताल कार्यरत हों, और हर व्यक्ति को विकास की रोशनी महसूस हो। यह आंदोलन है जनता की आवाज़ को सत्ता के गलियारे तक ले जाने का।

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